Text Practice Mode
साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो0नं0 9098909565
created Sep 19th 2019, 03:58 by sandhya shrivatri
0
395 words
1 completed
5
Rating visible after 3 or more votes
00:00
समय के साथ हमारी जिंदगी की रफ्तार भी बदलती रहती है। कभी ऐसी स्थिति भी आती हैं, जब हम पहले की रफ्तार के साथ दौड़ नही पाते और कभी ऐसी स्थिति आती है कि हम उम्मीद से अधिक तेजी से आगे निकल जाते है। कभी हमारे साथ चलने वाले लोग बहुत पिछड़ जाते हैं तो कभी हम उनके साथ चलने में बहुत पीछे हो जाते है। जब ऐसी स्थिति आती है कि हम अपने साथ चलने वालों की गति के साथ आगे नहीं बढ़ पाते, तो उन्हें आगे बढ़ते देखकर मन बहुत परेशान होता है।
ऐसे में याद रखना चाहिए कि हर व्यक्ति की अपनी क्षमताएं व अपने हालात यानी परिस्थितियां होती हैं। न ही हम अपनी परिस्थितियों से भाग सकते हैं और न ही हर तरह की दौड़ में शामिल हो सकते है। हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और सदैव उनसे आगे निकलने की होड़ में लगे रहते हैं। पीछे रह जाने का दु:ख भी व्यक्ति को परेशान कर देता हैं, लेकिन इस तरह आगे बढने की हमारी कोशिश, कई उम्मीदों का बोझ साथ लिए चलती हैं और जिस यात्रा में बोझ जितना ज्यादा होता है, वहां चाल उतनी ही धीमी हो जाती है। खेल दुनिया के ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अच्छे से अच्छे खिलाड़ी भी अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों में किसी कारण से अपना बेहतर नहीं दे पाए। ऐसी स्थिति में भी उन महान खिलाडि़यों ने हार नहीं मानी और दूसरों को आगे निकलते हुए देखकर भी स्वंय का खेलना बंद नहीं किया। धीमी गति से ही सही, लेकिन उन्होंने अंतत: फिनिशिंग लाइन को पार करके दुनिया को दिखाया कि वे अभी भी श्रेष्ठतम हैं।
जीवन में रूकावटें कभी भी आ सकती है। सब कुछ ठीक-ठाक होने पर भी कभी-कभी हमें अपने लक्ष्यों को टालना पड़ सकता हैं, पर दूसरों के साथ तुलना करते हुए जीना हमारी वापसी को मुश्किल बना देता है, क्योंकि दूसरों के जैसा होने की कोशिश हमें अपने जैसा नहीं रहने देती और इसके कारण हम अपने समय और संसाधन का ही नुकसान करते है। स्वयं को, हालातों को या दूसरों को कोसने में समय व्यर्थ न करें, बल्कि स्वयं पर भरोसा रखें। दूसरे क्या सोचेंगे,यह सोचने के बजाय जो बेहतर किया जा सकता है, उस पर ध्यान दें। जिंदगी का भी आनंद लें, धीमी गति से ही सही, हर दिन आगे बढ़ने की कोशिश करें और सदैव नया सीखने के लिए तैयार रहे।
ऐसे में याद रखना चाहिए कि हर व्यक्ति की अपनी क्षमताएं व अपने हालात यानी परिस्थितियां होती हैं। न ही हम अपनी परिस्थितियों से भाग सकते हैं और न ही हर तरह की दौड़ में शामिल हो सकते है। हम दूसरों से अपनी तुलना करते हैं और सदैव उनसे आगे निकलने की होड़ में लगे रहते हैं। पीछे रह जाने का दु:ख भी व्यक्ति को परेशान कर देता हैं, लेकिन इस तरह आगे बढने की हमारी कोशिश, कई उम्मीदों का बोझ साथ लिए चलती हैं और जिस यात्रा में बोझ जितना ज्यादा होता है, वहां चाल उतनी ही धीमी हो जाती है। खेल दुनिया के ऐसे कई उदाहरण हैं, जब अच्छे से अच्छे खिलाड़ी भी अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों में किसी कारण से अपना बेहतर नहीं दे पाए। ऐसी स्थिति में भी उन महान खिलाडि़यों ने हार नहीं मानी और दूसरों को आगे निकलते हुए देखकर भी स्वंय का खेलना बंद नहीं किया। धीमी गति से ही सही, लेकिन उन्होंने अंतत: फिनिशिंग लाइन को पार करके दुनिया को दिखाया कि वे अभी भी श्रेष्ठतम हैं।
जीवन में रूकावटें कभी भी आ सकती है। सब कुछ ठीक-ठाक होने पर भी कभी-कभी हमें अपने लक्ष्यों को टालना पड़ सकता हैं, पर दूसरों के साथ तुलना करते हुए जीना हमारी वापसी को मुश्किल बना देता है, क्योंकि दूसरों के जैसा होने की कोशिश हमें अपने जैसा नहीं रहने देती और इसके कारण हम अपने समय और संसाधन का ही नुकसान करते है। स्वयं को, हालातों को या दूसरों को कोसने में समय व्यर्थ न करें, बल्कि स्वयं पर भरोसा रखें। दूसरे क्या सोचेंगे,यह सोचने के बजाय जो बेहतर किया जा सकता है, उस पर ध्यान दें। जिंदगी का भी आनंद लें, धीमी गति से ही सही, हर दिन आगे बढ़ने की कोशिश करें और सदैव नया सीखने के लिए तैयार रहे।
saving score / loading statistics ...