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साँई टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) सीपीसीटी न्यू बैच प्रारंभ संचालक- लकी श्रीवात्री मो. नं. 9098909565
created Sep 19th 2019, 02:31 by Jyotishrivatri
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आचरण ही मानव को उच्च शिखर पर पहुंचता है और अधोगामी कराने में भी वही सहायक होता है। आचारण ही मानव को स्वस्थ्य, सबल और पुरूषार्थी बनाता है। आचारण ही मनुष्य को श्रीहीन, जर्जर और अस्वस्थ बनाता है। इस प्रतिकूलता का कारण क्या है? यह है आचरण के दो रूप एक सौम्य, दूसरा असौम्य। एक सुन्दर असुन्दर, एक सदाचरण, दूसरा दुराचरण है। मानव अगर सदाचारी होता है तो वह उन्नति की चरम सीमा को पकड़ लेता है, जगत विख्यात हो जाता है, कोई भी संसार का ऐसा कार्य नहीं होता, जिसको कि वह पूर्ण न कर सके। इतिहास के पन्ने उसके चरित्र लेखन के लिए लालायित रहते है। किन्तु अगर वह दुराचारी हुआ तो पतन के गर्त में जा गिरता है, कृमि-कीट की तरह मर जाता है और दुनिया में उसका कोई नाम नही रहता। सदाचारी पुरूष चिरंजीवी होता है। उसका जीवन सुखमय व्यतीत होता है। किन्तु दुराचारी पुरूष अस्वस्थ रहता है। रोग उसका पीछा नहीं छोड़ते। जीवनपर्यत वह दुखी रहता है। क्षणिक सुख उसके तमाम जीवन को करूण बना देता है।
संसार में जितने प्राणी हैं, सभी भगवान भरे हैं, वे सब भगवान की ही विविध अनन्त अभिव्यक्तियां है। अत: सब में भगवान को देखते हुए, किसी भी प्राणी का जरा भी अहित न करके, सबके कल्याण की भावना करते हुए भगवत्प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होते चले जाओ, पर यह निरन्तर समझते रहो कि ये सब यात्रा के साथी मात्र है। इनसे यहां का जो सम्बम्ध है, यह यथार्थ नहीं है। अत: इनमे साथ इनके हित का निर्दोष व्यवहार करो सबकी यथासाध्य सेवा करो। कहीं भी किसी में भी न तो शक्ति करो और न किसी से द्वेष ही करो। भगवान सेवा की शुद्ध भावना रखों। फिर तुम्हारा प्रत्येक कर्म की भगवान की पूजा बना जाएगा और तुम्हारा जीवन सफल हो जायेगा। मानव जीवन की सफलता ऊंचा अधिकार, विपुल धन-वैभव, संसार में अपार यश कीर्ति और बड़ी से बड़ी सफलता की प्राप्ति नहीं है। यदि ये सब परिस्थितियां और पदार्थ भगवान से विमुख करने वाले है तो इनका प्राणघातक मीठे विष या मित्र बनकर धोखे से मार डालने वाले शत्रु की भांति या विनाश ही श्रेयस्कर है।
संसार में जितने प्राणी हैं, सभी भगवान भरे हैं, वे सब भगवान की ही विविध अनन्त अभिव्यक्तियां है। अत: सब में भगवान को देखते हुए, किसी भी प्राणी का जरा भी अहित न करके, सबके कल्याण की भावना करते हुए भगवत्प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होते चले जाओ, पर यह निरन्तर समझते रहो कि ये सब यात्रा के साथी मात्र है। इनसे यहां का जो सम्बम्ध है, यह यथार्थ नहीं है। अत: इनमे साथ इनके हित का निर्दोष व्यवहार करो सबकी यथासाध्य सेवा करो। कहीं भी किसी में भी न तो शक्ति करो और न किसी से द्वेष ही करो। भगवान सेवा की शुद्ध भावना रखों। फिर तुम्हारा प्रत्येक कर्म की भगवान की पूजा बना जाएगा और तुम्हारा जीवन सफल हो जायेगा। मानव जीवन की सफलता ऊंचा अधिकार, विपुल धन-वैभव, संसार में अपार यश कीर्ति और बड़ी से बड़ी सफलता की प्राप्ति नहीं है। यदि ये सब परिस्थितियां और पदार्थ भगवान से विमुख करने वाले है तो इनका प्राणघातक मीठे विष या मित्र बनकर धोखे से मार डालने वाले शत्रु की भांति या विनाश ही श्रेयस्कर है।
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