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श्री वास्तव टाइपिस्ट दिल्ली
created Jan 28th 2019, 13:58 by VedPrakash59
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एक महिला साधू के पास जाकर बोली कि मेरा बेटा गुड़ बहुत खाता है, इस कारण यह अस्वस्थ रहता है, निवेदन है कि आप इसको समझाकर इसकी यह आदत छुड़ा दें. साधु ने कहा एक सप्ताह बाद आना. महिला अपने पुत्र के साथ एक सप्ताह बाद पहुंची. साधु ने फिर कह दिया एक सप्ताह बात आना. इस प्रकार चार सप्ताह बीत गए. पांचवीं बार जब माता-पुत्र पहुंचे, तो साधु ने पुत्र से पूछा कि तुम इतना गुड़ क्यों खाते हो, गुड़ खाना छोड़ दो. पुत्र ने अगले दिन से गुड़ खाना छोड़ दिया, माता ने जाकर साधु के प्रति हार्दिक क्रतज्ञता व्यक्त की और प्रश्न किया- किबाबा इस बात को कहने के तिए आपने पांच सप्ताह का समय कयों लिया बाबा ने हंसकर उत्तर दिया- मैं स्वयं गुड़ खाया करता था. जब तक मैं स्वयं गुड़ खाना नहीं छोड़ दुं, तब तक बालक से किस मुंह से कहता कि तू गुड़ खाना छोड़ दे. पांच सप्ताह में मैने गुड़ खाना छोड़ दिया था. इस कारण मेरे कथन ने बालक को प्रभावित किया और उसका वांछित परिणाम सामने आ गया।
हम स्वयं देख सकते हैं कि हमारे नेताओं द्वारा नित्य उपदेशात्कम बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जाते हैं, परन्तु उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि वक्ता की वाणी के पीछे नैतिक बल नहीं होता है इसके विपरीत जब ये बातें महात्मा गांधी कहते थे, तो हजारों व्यक्ति उनकी बात मानकर सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो जाया करते थे.
हम स्वयं देख सकते हैं कि हमारे नेताओं द्वारा नित्य उपदेशात्कम बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जाते हैं, परन्तु उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, क्योंकि वक्ता की वाणी के पीछे नैतिक बल नहीं होता है इसके विपरीत जब ये बातें महात्मा गांधी कहते थे, तो हजारों व्यक्ति उनकी बात मानकर सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो जाया करते थे.
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