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श्री वास्तव टाइपिस्ट दिल्ली
created Jan 9th 2019, 09:49 by VedPrakash59
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दलाई लामा तिब्बत की पुरातन परम्परा के 14वें धर्म गुरू हैं, दलाई लामा एक उपाधि है, जिसका अर्थ है- विद्वता का सागर, पहली बार यह उपाधि 16वीं शताब्दी के अन्त में सोनम ग्यात्यों को मंगोलिया के राजा अल्तन खां अईम ने उनके सम्मान में दी थी।
कौन जानता था कि पूर्वी तिब्बत के आप्दी प्रान्त के एक गरीब किसान परिवार का यह बालक दुनिया के बौध्द के रूप में पूजा जाएगा।
दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सों है दो वर्ष की उम्र में ही तिब्बती उन्हें पिछले दलाई लामा के अवतार के रूप में मानने लगे थे, आज भी 60 लाख तिब्बतीर उन्हे दया का देवता अवलोकितेस्वर का अवतार मानते हैं, किन्तु अत्यंत विनम्र और संकोची दलाई लामा स्वयं को एक बौद्ध भिक्षु से अधिक कुछ नहीं मानते।
माओ-त्से-तुंग की सेना ने तिब्बत पर कब्जा करने के लिए जब 1950 में आक्रमण किया, तब 15 वर्ष की अवस्था में दलाई लामा को पेइचिंग जाकर माओ से समझौता-वार्ता करनी पड़ी थी, चीनी साम्राज्यवाद के विरुद्ध सन् 1959 में तिब्बत का स्वतंत्र आन्दोलन विफल हो गया था, तब विवश होकर दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी, तब के वे अपने एक लाख तिब्बती शरणार्थी के साथ हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला नामक क्षेत्र में रह रहे हैं नन्हें ल्हासा के रूप में धर्मशाला आज दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्यालय आज दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्यालय बन चुका है।
महात्मा गांधी, दलाई लामा के प्रेरणा-स्रोत हैं, शांति और अहिंसा पर उनका अटूट विश्वास है. दलाई लामा कहते हैं- मुझे महात्मा गांधी के अहिंसा के रास्ते पर पूरा भरोसा है. मुझे हमेशा इसी से प्रेरणा मिली है और मुझे आशा है कि तिब्बत का सवाल हल होकर रहेगा. अहिंसा के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नोबेल पुरुस्कार पाने के बाद एक शान्तिवादी और अहिंसावादी नेदा के रूप सें दलाई लामा की अन्तर्राष्ट्रीय छवि निर्मित हुई है, इस तथ्य को दलाई लामा स्वयं स्वीकार करते हुए कहते है, भिक्षु होने का नाते मुझे पुरुस्कारों से फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
कौन जानता था कि पूर्वी तिब्बत के आप्दी प्रान्त के एक गरीब किसान परिवार का यह बालक दुनिया के बौध्द के रूप में पूजा जाएगा।
दलाई लामा का मूल नाम तेनजिन ग्यात्सों है दो वर्ष की उम्र में ही तिब्बती उन्हें पिछले दलाई लामा के अवतार के रूप में मानने लगे थे, आज भी 60 लाख तिब्बतीर उन्हे दया का देवता अवलोकितेस्वर का अवतार मानते हैं, किन्तु अत्यंत विनम्र और संकोची दलाई लामा स्वयं को एक बौद्ध भिक्षु से अधिक कुछ नहीं मानते।
माओ-त्से-तुंग की सेना ने तिब्बत पर कब्जा करने के लिए जब 1950 में आक्रमण किया, तब 15 वर्ष की अवस्था में दलाई लामा को पेइचिंग जाकर माओ से समझौता-वार्ता करनी पड़ी थी, चीनी साम्राज्यवाद के विरुद्ध सन् 1959 में तिब्बत का स्वतंत्र आन्दोलन विफल हो गया था, तब विवश होकर दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी, तब के वे अपने एक लाख तिब्बती शरणार्थी के साथ हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला नामक क्षेत्र में रह रहे हैं नन्हें ल्हासा के रूप में धर्मशाला आज दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्यालय आज दलाई लामा की निर्वासित सरकार का मुख्यालय बन चुका है।
महात्मा गांधी, दलाई लामा के प्रेरणा-स्रोत हैं, शांति और अहिंसा पर उनका अटूट विश्वास है. दलाई लामा कहते हैं- मुझे महात्मा गांधी के अहिंसा के रास्ते पर पूरा भरोसा है. मुझे हमेशा इसी से प्रेरणा मिली है और मुझे आशा है कि तिब्बत का सवाल हल होकर रहेगा. अहिंसा के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नोबेल पुरुस्कार पाने के बाद एक शान्तिवादी और अहिंसावादी नेदा के रूप सें दलाई लामा की अन्तर्राष्ट्रीय छवि निर्मित हुई है, इस तथ्य को दलाई लामा स्वयं स्वीकार करते हुए कहते है, भिक्षु होने का नाते मुझे पुरुस्कारों से फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
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