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"BUDDHA ACADEMY" SPECIAL --"RISHI RICHHARIYA"
created Dec 9th 2017, 03:47 by RishiRichhariya
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वर्तमान समय में प्रचलित अनेक चिकित्सा पद्धतियों में ऐलोपैथी, होम्योपैथी व आयूर्वेद यूनानी प्रमुख है। इन सब चिकित्सा पद्धतियों में आयुर्वेद वैद्यक एक लंबे समय तक भारत में प्रचलित एक मात्र प्रणाली थी। मुगलों के आगमन के साथ भारत में अरबी तथा यूनानी चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन हुआ। अंग्रेजी राज्य की स्थापना पर भारत में ऐलोपैथी तथा होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों का भी खूब प्रचार हुआ।
इनमें आयुर्वेदिक वैद्यक यूनानी हिमकत तथा ऐलोपैथिकतीनों चिकित्सा पद्धतियां मुलत: विपरित चिकित्सा पद्धति सिद्धांत पर आधारित है। अर्थात इनमें रोग को दूर करने के लिए प्राय: उन्हीं औषधियों का सेवन किया जाता है, जो रोग के लक्षणों के विपरित गुणधर्म वाली हों। होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली में किसी रोग को दूर करने के लिए इसरो के सामन ही गुणधर्म वाली औषधि का प्रयोग किया जाता है। आत: इसे सादृश चिकित्सा पद्धित कहते।
भारतीय आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार विष की चिकित्सा विष है इसका तात्पर्य है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा के सिद्धांत पर आधारित है, परंतु वास्तविकता यह है, क्योंकि उसमें बहुत सी ओषधियाँ ऐसी हैं, जिनकी गणना सादृश चिकित्सा के अंतर्गत की जा सकती है। आयुर्वेद पद्धति के उपचार में ऐलोपैथी, होम्योपैथी और प्राकृति चिकित्सा पद्धति के सभी सिद्धांत समाविष्ट है। यह चिकित्सा पद्धति विशुद्ध रूप से भारतीय है। जो इसके भूमि में जड़ी-बूटियों वनस्पतियों एव पशु-पक्षियों प्राप्त उत्पादों आधारित है, जिससे बनी ओषधियों अनुषांगी प्रभाव नहीं होते। आचार्य 'अमन तिवारी' जी के अनुसार-
होम्योंपैथी में रोग का कोई नाम नहीं होता। इसमें श्ारीर में होने वाली विकृतियों के लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। अत: होम्योपैथी को लक्षणिकों कि चिकित्सा विज्ञान भी कहा जा सकता है।
वह पदार्थ जिसके सेवन से रोग ठीक हो जाता है औषधिक कहलता है लेकिन होम्योपैथी के संदर्भ में वह पदार्थ जिसमें रोग को उत्पन्न करने अथवा नष्ट करने , दोनों की शक्ति विद्यमान हो औषधि कहलाता है। वे पदार्थ जिनके सहारे औषधि को तैयार किया जाता है तथा सेवन कराया जाता है औषधी बाहर कहलाते हैं। यद्यपि औषधियों का निर्माण सदाहरण जड़ी खनिज पदार्थ जीव जन्तुओं से प्राप्त पद्धार्थों तथा रोगों के किटाणुओं से किया जाता है फिर भी औषधि विज्ञान में जड़ी बुटियों तथा पेड़ पौधा का विशेष स्थान है।
संसार के पद्धतियों में रोगों के निवारण के लिए पौधों का उपयोग किया जाता है। संसार के लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या अपने स्वार्थ रक्षा के लिए वनस्पति एवं जड़ी-बूटियों से प्राप्त औषधियों पर ही निर्भर करती है।
औपचारिक रूप से यूनानी एवं आयुर्वेद एवं दोनों पद्धतियाँ एक समान हैं, दोनों में शारीरिक स्थिति का विशेष महत्व है। आयुर्वेद एकदम विशुद्ध चिक्त्सिा पद्धति है जो विदेशी चिकित्सा पद्धतियों के प्रभाव से दूर है जबकि यूनानी चिकित्सा पद्धति का उद्गम ग्रीस देश में हुआ था, जो फारस व अफ्रीका की चिकित्सा पद्धतियों से अत्यधिक प्रभावित है और प्रभावित होकर इसका निर्माण हुआ। !धन्यवाद!
इनमें आयुर्वेदिक वैद्यक यूनानी हिमकत तथा ऐलोपैथिकतीनों चिकित्सा पद्धतियां मुलत: विपरित चिकित्सा पद्धति सिद्धांत पर आधारित है। अर्थात इनमें रोग को दूर करने के लिए प्राय: उन्हीं औषधियों का सेवन किया जाता है, जो रोग के लक्षणों के विपरित गुणधर्म वाली हों। होम्योपैथिक चिकित्सा प्रणाली में किसी रोग को दूर करने के लिए इसरो के सामन ही गुणधर्म वाली औषधि का प्रयोग किया जाता है। आत: इसे सादृश चिकित्सा पद्धित कहते।
भारतीय आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार विष की चिकित्सा विष है इसका तात्पर्य है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा के सिद्धांत पर आधारित है, परंतु वास्तविकता यह है, क्योंकि उसमें बहुत सी ओषधियाँ ऐसी हैं, जिनकी गणना सादृश चिकित्सा के अंतर्गत की जा सकती है। आयुर्वेद पद्धति के उपचार में ऐलोपैथी, होम्योपैथी और प्राकृति चिकित्सा पद्धति के सभी सिद्धांत समाविष्ट है। यह चिकित्सा पद्धति विशुद्ध रूप से भारतीय है। जो इसके भूमि में जड़ी-बूटियों वनस्पतियों एव पशु-पक्षियों प्राप्त उत्पादों आधारित है, जिससे बनी ओषधियों अनुषांगी प्रभाव नहीं होते। आचार्य 'अमन तिवारी' जी के अनुसार-
होम्योंपैथी में रोग का कोई नाम नहीं होता। इसमें श्ारीर में होने वाली विकृतियों के लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। अत: होम्योपैथी को लक्षणिकों कि चिकित्सा विज्ञान भी कहा जा सकता है।
वह पदार्थ जिसके सेवन से रोग ठीक हो जाता है औषधिक कहलता है लेकिन होम्योपैथी के संदर्भ में वह पदार्थ जिसमें रोग को उत्पन्न करने अथवा नष्ट करने , दोनों की शक्ति विद्यमान हो औषधि कहलाता है। वे पदार्थ जिनके सहारे औषधि को तैयार किया जाता है तथा सेवन कराया जाता है औषधी बाहर कहलाते हैं। यद्यपि औषधियों का निर्माण सदाहरण जड़ी खनिज पदार्थ जीव जन्तुओं से प्राप्त पद्धार्थों तथा रोगों के किटाणुओं से किया जाता है फिर भी औषधि विज्ञान में जड़ी बुटियों तथा पेड़ पौधा का विशेष स्थान है।
संसार के पद्धतियों में रोगों के निवारण के लिए पौधों का उपयोग किया जाता है। संसार के लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या अपने स्वार्थ रक्षा के लिए वनस्पति एवं जड़ी-बूटियों से प्राप्त औषधियों पर ही निर्भर करती है।
औपचारिक रूप से यूनानी एवं आयुर्वेद एवं दोनों पद्धतियाँ एक समान हैं, दोनों में शारीरिक स्थिति का विशेष महत्व है। आयुर्वेद एकदम विशुद्ध चिक्त्सिा पद्धति है जो विदेशी चिकित्सा पद्धतियों के प्रभाव से दूर है जबकि यूनानी चिकित्सा पद्धति का उद्गम ग्रीस देश में हुआ था, जो फारस व अफ्रीका की चिकित्सा पद्धतियों से अत्यधिक प्रभावित है और प्रभावित होकर इसका निर्माण हुआ। !धन्यवाद!
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