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'जहर' के फंदे पर 'न्‍याय'

created Dec 3rd 2017, 11:49 by


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आपातकाल के दौर में दुष्यंत कुमार ने कहा था, ‘यहां दरख्तों  के साए में धूप लगती है, चलो यहां से चलें उम्रभर के लिए’ अब बात हमारे बुंदेलखंड की है। यहां प्रशासनिक मशीनरी लोगों को न्याय देने के प्रति कतई चिंतित नहीं दिखती। हालिया हुए घटनाक्रमों से तो ऐसा लगता है कि एक पूरा का पूरा समाज ही न्याय की आस छोड़ चुका है और वह भी ‘उम्रभर’ के लिए चला ही जाना चाहता है। ताजा मामला गृहमंत्री के जिले से जुड़ा है। यहां एक युवक कॉलेज प्रबंधन से इतना पीडि़त हो गया कि उसने अपनी ही मार्कशीट पाने जनसुनवाई में अफसरों के सामने जहर खाकर जान देने की कोशिश की। वित्तमंत्री का जिला दमोह भी पीछे नहीं है। यहां बिजली कंपनी के अफसर बिल वसूलने के लिए पहले किसान पर दबाब बनाते हैं और जब वह समक्ष नहीं होता तो उसकी मोटर जब्त कर लेते हैं, मजबूरन सदमे में आकर गरीब किसान फंदे पर झूलकर जान देने का प्रयास  करता है। आखिर क्या हो गया सिस्टम को ? क्या  जान की कीमत न्याय के पलड़े मे कमतर है? क्यों लोगों को अपनी बात मजबूती से रखने के लिए ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। जो भी हो बहरहाल, अब तो लगता है कि प्रशासनिक, पुलिस पंचायती राज और विकास अधिकारियों  का इतना जमघट समाज को यह आस्था नहीं दिला सकता है कि बुंदेलखंड में ‘न्याय’ का शासन है। नौकरशाही की असंवेदनशीलता छतरपुर के बकस्वाहा में भी देखने को मिलती है। यहां कड़कड़ाती ठंड में मासूम बच्चे परीक्षा सेंटर बदलवाने की मांग को लेकर दिन से रात तक धरने पर बैठने को मजबूर हैं। उनकी स्कू‍ल भवन को लेकर भी मांग है। दरअसल, यहां योजनाकारों ने 25 किलोमीटर दूर परीक्षा सेंटर बना दिया है। ऐसे में बच्चों को उतनी दूर परीक्षा देने जाना पड़ेगा, जो परेशानी भरा होगा। ऐसा नहीं है कि गांव में ही परीक्षा सेंटर बनना मुश्किल हो, लेकिन जिम्मेदारों की अदूरदर्शिता से ऐसे हालत निर्मित हो रहे है। उधर केंद्रीय मंत्री के टीकमगढ़ में जिला पंचायत सदस्य ग्रामीणों संग माइक लेकर पंचायत के सभागार में जा पहुंची और उन्होंने अधिकारियों पर ग्रामीणों की अनदेखी का आरोप लगाया। सिस्टम की खामियां बताने ये तो महज उदाहरण हैं। मंगलवार को होने वाली जन सुनवाई में तो ऐसे सैकड़ों केस सामने आते हैं, जब पीडि़त अफसरों की चौखट पर एडि़यां रगड़-रगड़कर परेशान हो जाते हैं, पर उनकी गुहार नहीं सुनी जाती। मुकदमे कभी खत्म नहीं होते। विवाद अपराधों में तब्दील हो जाते हैं। ग्रामीण समस्याओं के मूल में 75 प्रतिशत भूमि सम्बंधी विवादों के मामले हैं1 तहसीलदार से लेकर पटवारी तक इन विवादों के समाधान में लगे हैं, लेकिन न्याय का तो अहसास भी नहीं होता। हालात जल्द ही नहीं बदले तो आगे स्थिति और गंभीर होगी। वैसे भी अन्याय की सुनामी उतनी ऊंची नहीं है, जितनी दिख रही है1 बस सबको मिलजुलकर नई सोच, सच की सही परख करनी होगी1

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