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टॉइपिंग बूस्टर (गति बढ़ाने के लिए)

created Oct 24th 2017, 07:25 by NavneetBhardwaj2696


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श्री गुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊंरघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
मैं श्री गुरुमहाराज के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को पवित्र करके धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाले रामचन्द्र जी के यश का वर्णन करता हूं।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल विद्या बुद्धि देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।
हे पवनसुत! स्वयं को बुद्धि से रहित समझकर आपको याद करता हूं। आप मुझे बल, बुद्धि एवं विद्या देकर मेरे दोषो एवं दु:खों का नाश कीजिए।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।  
जय कपीसतिहुँ लोक उजागर।।
हे केसरीनन्दन! आपकी जय हो। आप ज्ञान एवं गुण के भंडार हैं। ज्ञान के गहरे सागर हैं। हे कपीश्वर! तीनों लोकों में आपका यश फैला हुआ है। आपकी जय हो। जय हो जय हो।
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवन सुत नामा।।
आप पवनपुत्र हैं, अंजनि माता के प्रिय पुत्र हैं, श्री रामचन्द्र जी के दूत हैं। आपके समान इस संसार में दूसरा कोई बलवान नहीं है।
महावीर विक्रम बजरंगी।  
कुमति निवार सुमति के संगी।।
हे बजरंग बली, आप महावीर एवं विशेष पराक्रम वाले हैं। आप मूर्ख एवं अज्ञानी व्यक्तियों की दुर्बुद्धि को दूर कर अच्छी बुद्धि वालों के सहायक हैं।
कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
आपका शरीर सोने के रंग जैसा है। आप सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित हैं। साथ ही कानों में कुण्डल एवं घुंघराले बाल आपकी शोभा बढ़ा रहे हैं।
हाथ बज्र ध्वजा बिराजै। कांधे मूँज जनेऊ साजै।।  
आपके हाथों में वज्र एवं ध्वजा विराजमान है। आपने कंधे पर मूंज का जनेऊ धारण किया हूआ है।
संकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जगबन्दन।।
हे शंकर  के सुतरूपी अवतार, हे केसरीनन्दन! आपके पराक्रम एवं महान यश को सारा संसार पूजता है।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
आप बहुत विद्वान् हैं, विद्यावान एवं गुणवान हैं। आप सद श्री रामचन्द्रजी के कार्य करने उनकी सेवा के लिए तत्पर रहते हैं।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
आपको श्री रामजी का गुणगान सुनने में आनन्द प्राप्त होता है। आपके हृदय में भगवान श्री राम, माता सीता एवं लक्ष्मण सहित वास करते हैं।
सूक्म रूप धरि सियहि दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा।।
आपने माता सीता को अत्यन्त छोट रूप धारण कर दिखाया तथा अति भयंकर रूप धारण कर रावण की लंका नगरी को जलाया।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
आपने बहुत ही भयंकर रूप धारण करके दुष्ट राक्षसों से युद्ध कर उनका संहार किया और रामचन्द्र जी के उद्देश्यों को सफल बनाने में उन्हें पूर्ण सहयोग दिया।
लाय संजीवन लखन जियाए।
श्री रघुबीर हरषि उर लाए।।
 लक्ष्मणजी के युद्ध में मूर्छित हो जाने पर आपने संजीवनी बूटी लाकर उन्हें जीवनदान दीया। अत: रामचन्द्रजी ने अत्यन्त हर्षित एवं गर्वित होकर आपको अपने हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
हे महावीर! उस समय श्री राम ने आपकी बहुत प्रंशसा की और कहा तुम मुझे भाई भरत के समान प्यारे हो।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि  श्री पित कंठ लगावैं।।
‘हजारों मुख आपका यशोगान करें’- यह कहते हुए श्री राम ने आपको हृदय से लगा लिया।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।  
नारद सारद सहित अहीसा।।
आपकी महिमा इतनी निराली है कि सनत्कुमार, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनक आदि मुनि, ब्रह्मा आदि देवगण तथा नारद और सरस्वती के संग शेषनाग भी आपके गुण गाते नहीं थकते।  
जम कुबेर दिक्पाल जहां ते।
कवि कोविद कहि सके कहां ते।।
यमराज, कुबेर तथा सब दिशाओं के रक्षक, कवि एवं विद्वान् आदि सब मिलकर भी आपके यश का पूर्ण वर्णन कहां कर सकते हैं।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा।।
आपने वानर राज सुग्रीव को भगवान श्री राम से मिलाकर उन पर बहुत बड़ा उपकार किया, जिसके कारण ही उन्हें फिर से खोया हुआ राज्य मिल गया।
तुम्हारो मन्त्र विभीषण माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
आपके परामर्श को विभीषण ने मानकर उसका पालन किया। जिसके फलस्वरूप वे लंकाधिपति बने इसको सन्पूर्ण संसार जानता है।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लील्यो ताहि मधुरफल जानू।।
आपका बल एवं महिमा इतनी अपरंपार है कि जो सूर्य हजारों योजन दूर है, जहां तक पहुंचने में हजारों युग लग जायें उन सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं।
प्रभु श्री रामचन्द्रजी न् आपको अपनी अंगूठी दी। जिसे मुंह में रखकर आपने लंबे-चौड़े समुद्र को पार किया, लेकिन आपके लिये यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
संसार के कठिन से कठिन कार्य, आपकी कृपा से सहज एवं सुलभ हो जाते हैं। अर्थात जस व्यक्ति को आपकी कृपा प्राप्त हो जाये वह कठिन कार्य को अति सहजता से कर लेता हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत आज्ञा बिनु पैसारे।।
आप भगवान श्री रामचन्द्र के महल के द्वार के रक्ष हैं। आपकी आज्ञा के बिना जिसमें किसी को प्रवेश नहीं मिलता।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।  
तुम रक्षक काहू को डरना।।
 आपकी शरण में आने वाले व्यक्ति को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं, तथा आपकी शरण में आये हुये को किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता।
आपन तेड सम्हारो आपे।
तीनों लोक हांक ते कांपै।।
अपने शक्तिशाली तेज को केवन आप ही सह सकते हैं, सिंह गर्जना से तीनों लोक कांपने लगते हैं। हे महावीर! फिर आपसे बड़ा वीर इस त्रिलोक में कौन है।
भूत पिशाच निकट नहीं आवै।  
महाबीर जब नाम सुनावै।।
हे पवनसुत आपके ‘महावीर’ नाम को जपते ही भूत-पिशाच आदि दुष्टात्माएं दूर भाग जाती हैं। तथा निकट नहीं आती हैं।
नासै रोग हरै सब पीरा।  
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
हे वीर हनुमान्जी, आपके नाम का नियमित जाप करने से सभी रोग एवं कष्ट दूर हो जाते हैं। प्राणी सुख एवं सम्पत्ति युक्त हो जाता है।
संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
जो व्यक्ति मन-क्रम, वचन से आपका ध्यान करता है उसके सभी संकटों को आप दूर करते हैं। ऐसे व्यक्ति के कष्ट आप दूर कर उसका उद्धार करते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा।।
सभी तपस्वी राजाऔं में श्री रामचन्द्रजी श्रेष्ठ हैं। आपने उनके सब कार्यों को पूर्ण रूप से सिद्ध कीया है। अर्थात भगवान राम के सभी कार्यों को आपने परिश्रम से कर उन्हें पूर्ण किया है।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।
जो मानव आपका कृपापात्र हो आप उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर उसे जीवन फल अर्थात् मोक्ष प्रदान करते हैं।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
चारों युगों (सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग तथा कलियुग) में आपका यश कीर्ति फैली है। सभी लोक कीर्ति से प्रकाशमान हैं।
साधु सन्त के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
आप अपना भक्तजनों एवं भगवान श्री रानचन्द्रजी के प्यारे हैं। आप ही साधु-सन्तों की रक्षा करते हैं तथा दुष्ट एवं पापी राक्षसों का पूरी तरह नाश भी आप ही करते हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस वर दिन जानकी माता।।
आपको जानकी मैय्या से ऐसा वर प्राप्त है जिससे आप किसी भी व्यक्ति को ‘आठों सिद्धियां’ और ‘नौ निधियां’ दे सकते हैं।
आठ सिद्धियां - 1. अणिमा,  2. महिमा, 3. गरिमा, 4. लघिमा, 5. प्राप्ति,  6. प्राकाम्य, 7. ईशित्व, 8. वाशित्व
नौनिधियां - पद्या, महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, बर्च्च।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
आप सदा रामचन्द्रजी की शरण में रहते हैं। इसलिये आपके पास ‘राम-नाम’ रूपी ऐसी दवा है जिससे मानव के असाध्य रोगों का भी नाश हो जाता हैं।
तुम्हरे भजन राम को पावै।  
जनम जनम के दुख बिसरावै।।
आपको चिन्तन, मनन भजन करने वाले सभी भक्तों को भगवान श्री राम के दर्शन होते हैं और उनके जन्म-जन्मांतर सारे दु:ख दूर हो जाते हैं।
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि भक्त कहाई।।
आपके भजन के प्रभाव से जीवात्मा अंतिम समय रामचन्द्रजी के परम धाम को जाते हैं और यदि फिर भी मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलाएंगे।
और देवता चित्त धरई।
हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
श्री हनुमान् जी के चिन्तन- मनन से सारे दु:ख दूर होते हैं तथा सभी सुखों की प्राप्ति होती है। उनके चिन्तन के बाद किसी अन्य देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
हे पवनसुत! आपके स्मरण मात्र से ही व्यक्ति के सभी दु:ख कट जाते हैं और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
हे हनुमान् जी, आपकी सदा जय-जयकार हो। आप मुझ पर सदा गुरुदेव के समान कृपा करें।
जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महासुख होई।।
जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ कर लेता है, वह संसार के सभी बन्धनों मुक्त हो जाता है और उसे परम सुख मिलता है।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।  
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध होते हैं। शंकर भगवान् इस बात के साक्षी हैं, क्योंकि उन्होंने यह हनुमान् चालीसा लिखवाया।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
हे महावीर! मैं तुलसीदास सदा श्रीराम चन्द्रजी का दास रहा हूं। इसलिए आप कृपा करके मेरे ह्रदय में निवास कीजिए।
 
पवन तनय संकट हरण,
मंगल मूरति रूप।
रामलखन सीता सहित,  
हृदय बसहु सुर भूप।।
हे पवनसुत! आप दुखों को दूर करने वाले तथा साक्षात् मंगल स्वरूप हैं। इसलिए हे देवों के स्वामी! आप श्री राम, श्री लक्ष्मण और मां सीता के साथ आकर मेरे हृदय में निवास कर मुझे कृतार्थ कीजिये।
 
 
 

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