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हिमाँशु - टेस्ट 09
created Sep 29th 2017, 02:53 by himrajdon
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प्राचीनकाल में भारतवर्ष प्रत्येक दृष्टिकोण से विश्व के सर्वाधिक सम्पन्न देशों में था। इसे अन्य देशों के लोग सोने की चिड़िया के नाम से पुकारते थे। समय बदला इतिहास ने करवट ली, भारतीयो की मूर्खता के कारण अनेक बार विदेशियों ने हमारे देश पर आक्रमण किये, इसे हर तरह से हानि पहुचांई गई। धर्म एवं ज्ञान-विज्ञान से संबंधित अनेक ग्रन्थों को विदेशी या तो उन्हें उठा ले गए अथवा उन्हें नष्ट कर दिया गया। विज्ञान की ऐसी बहुत सी खोजें जिन्हें भारतीय ऋषि मुनि बहुत पहले से ही ज्ञात कर चुके थे, उन खोजों को, पाश्चात्य वैज्ञानिकों का ज्ञान का भण्डार, वर्तमान समय के लोग मानते हैं। मैं अपने इस लेख में भारतीय जनता को एक ही प्रमाणिक जनकारी दे रहा हूँ जिसके बारे में यह माना जाता है कि यह खोज पाश्चात्य वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।
ग्रह नक्षत्रों की खोज, उनकी गति, आकार-आकर्षण शक्ति, रंग, किरणें आदि की खोज आधुनिक विज्ञान की देन नहीं है जिसकी आयु अभी लगभग तीन सौ वर्षों की है। आज से हजारों वर्ष पूर्व ही भारतीय ऋषियों ने इसका ज्ञान प्राप्त कर लिया था, बुध ग्रह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है यह सूर्य से 27 अंश से अधिक दूर नहीं जा सकता। यह सूर्योदय से एक घंटा पूर्व उसी समय दृष्टिगोचर होता है, अब सूर्य से इसकी दूरी तेरह अंश अथवा उससे अधिक हो आज के वैज्ञानिक अभी भी यह सोचकर चकित होते हैं कि किस प्रकार भारतीय ऋषियों ने केवल चर्म धातुओं द्वारा इस ग्रह की खोज की और इसे तारों में स्थान न देकर ग्रहों में स्थान दिया। ब्राह्माण्ड के ग्रहों, उपग्रहों, धूम्र-केतुओं, नीहारिकाओं, आकाशगंगा आदि को देखकर मनुष्य के मन में इनके संबंध में जानने की जिज्ञासा अनादि समय से रही है। भारत इस दिशा में सदैव अग्रणी रहा है यहां के ज्योतिर्विद और मनिषीगण बड़ी श्रम साधना और समर्पण के साथ रात्रि के अंधकार मे आकाश में ज्योर्तिमान इन ज्योतिमय पिण्डों के संबंध में सूक्ष्मातिसूक्ष्म बातों की जानकारी प्राप्त कर काल गणना का ज्ञान इन ज्योति पिण्डों की रूप रेखा एवं दूरी का मापन करने में सफल सिद्ध हुए। अतः यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सौर धब्बों की खोज गौलीलियों ने की। वास्तव में विश्व में सर्वप्रथम सौर धब्बों की खोज वराह मिहिर ने की।
ग्रह नक्षत्रों की खोज, उनकी गति, आकार-आकर्षण शक्ति, रंग, किरणें आदि की खोज आधुनिक विज्ञान की देन नहीं है जिसकी आयु अभी लगभग तीन सौ वर्षों की है। आज से हजारों वर्ष पूर्व ही भारतीय ऋषियों ने इसका ज्ञान प्राप्त कर लिया था, बुध ग्रह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है यह सूर्य से 27 अंश से अधिक दूर नहीं जा सकता। यह सूर्योदय से एक घंटा पूर्व उसी समय दृष्टिगोचर होता है, अब सूर्य से इसकी दूरी तेरह अंश अथवा उससे अधिक हो आज के वैज्ञानिक अभी भी यह सोचकर चकित होते हैं कि किस प्रकार भारतीय ऋषियों ने केवल चर्म धातुओं द्वारा इस ग्रह की खोज की और इसे तारों में स्थान न देकर ग्रहों में स्थान दिया। ब्राह्माण्ड के ग्रहों, उपग्रहों, धूम्र-केतुओं, नीहारिकाओं, आकाशगंगा आदि को देखकर मनुष्य के मन में इनके संबंध में जानने की जिज्ञासा अनादि समय से रही है। भारत इस दिशा में सदैव अग्रणी रहा है यहां के ज्योतिर्विद और मनिषीगण बड़ी श्रम साधना और समर्पण के साथ रात्रि के अंधकार मे आकाश में ज्योर्तिमान इन ज्योतिमय पिण्डों के संबंध में सूक्ष्मातिसूक्ष्म बातों की जानकारी प्राप्त कर काल गणना का ज्ञान इन ज्योति पिण्डों की रूप रेखा एवं दूरी का मापन करने में सफल सिद्ध हुए। अतः यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि सौर धब्बों की खोज गौलीलियों ने की। वास्तव में विश्व में सर्वप्रथम सौर धब्बों की खोज वराह मिहिर ने की।
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