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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Apr 3rd, 07:33 by Jyotishrivatri
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लगातार बढ़ते तापमान के गंंभीर परिणामों से निपटने के लिए काफी काम किया जाना है। यूरोप ने इस समस्या का त्वरित समाधान निकाला है- बैंकों की मदद ली जाए। हो सकता है उद्योग जगत से जुड़े लोग इस बात को पसंद न करें लेकिन बैंक कार्बन की कीमत बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने का कुशल माध्यम हैं कि सभी कम्पनियां अपने कार्बन उत्सर्जन को समुचित तरीक से निस्तारित करें। सरकार बैंकों को निगरानी का काम सौंप सकती है। अगर यह आपत्तिजनक लगता है तो इसे दूसरे नजरिये से देखें। बैंकों का इस्तेमाल राजनीतिक और सामाजिक कार्य के लिए पहले से ही होता आया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- अमरीका मनीलॉन्ड्रिंग नियमों के चलते पिछले बीस साल से आतंक को मिल रहे वित्त पोषण से मुकाबला करने और राजनीतिक तौर पर नापसंद लोगों या खतरनाक गुट की गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए किया गया बैंकों का इस्तेमाल।
फ्रांसीसी इंटरनेशनल बैंकिंग समूह बीएनपी परिबास पर अमरीका के शत्रु देशों की मदद करने के लिए 2014 में 9 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया गया था। सूडान, ईरान और अमरीका के वित्तीय लेन-देन इसी के जरिए हो रहे थे। सीधी सी बात है कि हर चीज के मूल में पैसा है और बैंकों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। बैंकिंग अर्थव्यवस्था की एकल खिड़की है, जिस पर पहले से ही निगरानी और नियमन जारी है।
जलवायु के मोर्चे पर बैंकों की भागीदारी का विचार यह है कि बैंक इस पर अधिक ध्यान दें वे किस प्रकार की कंपनियों के उधार दे रहे हैं और किस कीमत पर। कई बैंक कोयला बिजली संयंत्रों को पैसा देना बंद कर चुके हैं, लेकिन जलवायु संबंधी जोखिम और ज्यादा पूंजी की जरूरत के मामलों में वित्तीय लागत बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। इससे व्यापार गतिविधियों में स्वच्छता आएगी और उद्योग प्रदूषणकारी प्रवृत्तियों पर लगाम लगेगी। यूरोपीय बैंकिंग प्राधिकरण ने इसी सप्ताह कहा है कि बैंक कड़े पर्यावरणीय नियम को गंभीरता से लें और उन्हें अपनी इक्विटी में जोड़ना शुरू करें। इससे उन्हें जलवायु जोखिमों के कारण होने वाले नुकसान को सहने में मदद मिलेगी। सरकारों को यह समझ आ गया है कि वित्तीय माध्यम से कार्यवाही आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही रूप में व्यवहार्य है। मतदाता कारों, ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं या कंपनियों पर अतिरिक्त कर पसंद नहीं करते, क्योंकि इससे उनके लिए महंगाई बढ़ जाती है। प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग रोकने के लिए इनका महंगा होना ठीक है ताकि लोग वैकल्पिक उपायों की ओर बढ़ें। पर्यावरण विरोधी गतिविधियों की कीमतें बढ़ाना ही सही समाधान है।
कुछ बैंकर कार्बन की कीमतें बढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं, जो सारे उद्याेगों को प्रभावित करता है। इससे बड़े दोषियों को भारी कीमत चुकानी होगी। उत्सर्जन व्यापार योजनाएं या कार्बन क्रेडिट इसका एक तरीका है। ये भी कर जितने ही प्रभावी होते हैं लेकिन इनकी कीमत बाजार तय करते हैं, सरकारें नहीं। हां, इसका एक खमियाजा यह है कि कई बार अनुमान के आधार पर चीजों की कीमतें गलत भी लग सकती है।
फ्रांसीसी इंटरनेशनल बैंकिंग समूह बीएनपी परिबास पर अमरीका के शत्रु देशों की मदद करने के लिए 2014 में 9 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया गया था। सूडान, ईरान और अमरीका के वित्तीय लेन-देन इसी के जरिए हो रहे थे। सीधी सी बात है कि हर चीज के मूल में पैसा है और बैंकों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। बैंकिंग अर्थव्यवस्था की एकल खिड़की है, जिस पर पहले से ही निगरानी और नियमन जारी है।
जलवायु के मोर्चे पर बैंकों की भागीदारी का विचार यह है कि बैंक इस पर अधिक ध्यान दें वे किस प्रकार की कंपनियों के उधार दे रहे हैं और किस कीमत पर। कई बैंक कोयला बिजली संयंत्रों को पैसा देना बंद कर चुके हैं, लेकिन जलवायु संबंधी जोखिम और ज्यादा पूंजी की जरूरत के मामलों में वित्तीय लागत बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। इससे व्यापार गतिविधियों में स्वच्छता आएगी और उद्योग प्रदूषणकारी प्रवृत्तियों पर लगाम लगेगी। यूरोपीय बैंकिंग प्राधिकरण ने इसी सप्ताह कहा है कि बैंक कड़े पर्यावरणीय नियम को गंभीरता से लें और उन्हें अपनी इक्विटी में जोड़ना शुरू करें। इससे उन्हें जलवायु जोखिमों के कारण होने वाले नुकसान को सहने में मदद मिलेगी। सरकारों को यह समझ आ गया है कि वित्तीय माध्यम से कार्यवाही आर्थिक और राजनीतिक दोनों ही रूप में व्यवहार्य है। मतदाता कारों, ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं या कंपनियों पर अतिरिक्त कर पसंद नहीं करते, क्योंकि इससे उनके लिए महंगाई बढ़ जाती है। प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग रोकने के लिए इनका महंगा होना ठीक है ताकि लोग वैकल्पिक उपायों की ओर बढ़ें। पर्यावरण विरोधी गतिविधियों की कीमतें बढ़ाना ही सही समाधान है।
कुछ बैंकर कार्बन की कीमतें बढ़ाने को प्राथमिकता देते हैं, जो सारे उद्याेगों को प्रभावित करता है। इससे बड़े दोषियों को भारी कीमत चुकानी होगी। उत्सर्जन व्यापार योजनाएं या कार्बन क्रेडिट इसका एक तरीका है। ये भी कर जितने ही प्रभावी होते हैं लेकिन इनकी कीमत बाजार तय करते हैं, सरकारें नहीं। हां, इसका एक खमियाजा यह है कि कई बार अनुमान के आधार पर चीजों की कीमतें गलत भी लग सकती है।
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